भारतीय वास्तुकला और प्राचीन भारतीय वास्तुकला का संक्षेप विवरण:-
भारतीय वास्तुकला का महत्व:
वास्तुकला का अर्थ:-
"यदि हम वास्तुकला शब्द का संधि-विच्छेद करते हैं, तो हमें दो भाग मिलते हैं। वास्तु + कला।"
वास्तु शब्द संस्कृत शब्द 'वस् ' से लिया गया है जिसका अर्थ है रहना, बसना, निवास करना, आदि।दूसरे शब्दों में, इसका अर्थ है घर, आवास, और निवास आदि।
वास्तु शब्द संस्कृत शब्द 'वस् ' से लिया गया है जिसका अर्थ है रहना, बसना, निवास करना, आदि।दूसरे शब्दों में, इसका अर्थ है घर, आवास, और निवास आदि।
"वास्तु का अर्थ है आर्किटेक्चर, जो लैटिन शब्द लेक्टिन से लिया गया है, जिसका अर्थ है निर्माता।"
भारत में अधिकांश कलात्मक और स्थापत्य अवशेष धार्मिक हैं, जैसे चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर और गुफाएँ; ये सभी भारतीय प्राचीन कला को प्रदर्शित करते हैं।
जैसे अन्नागार, प्रशासनिक भवन, खंभों वाला हॉल और आंगन आदि।
"ऊंचे भाग में स्थित इमारतें शासकों और कुलीन वर्ग के निवास स्थान हुआ करते थे।"
नियमित सफाई और रखरखाव के लिए नालियों को ढक कर रखा जाता था ताकि बाहरी कचरा नाली में न जा सके, तथा नियमित दूरी पर मलपिंड बनाए जाते थे ताकि नालियों में बहने वाला कचरा वहाँ एकत्र हो सके और सफाई करना आसान हो। व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से स्वच्छता पर जोर दिया जाता था ताकि शहरों में स्वच्छता बनी रहे।
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वास्तुकला की उत्पत्ति:-
जब से मनुष्य ने अपने लिए आश्रय बनाया है, तब से वास्तुकला विज्ञान की उत्पत्ति मानी जाती है।वास्तुकला का आकार और विस्तार:
वास्तुकला इमारतों की संरचना और निर्माण का विस्तार करती है।उपयोग की जाने वाली सामग्री:-
लकड़ी, धातु, पत्थर, ईंट, कांच, रेत, सीमेंट और विभिन्न अन्य सामग्रियों के मिश्रण का उपयोग आमतौर पर वास्तुकला में किया जाता है।वास्तुकला के सिद्धांत:-
वास्तुकला में इंजीनियरिंग और गणित का अध्ययन शामिल है; इसमें माप का सटीक ज्ञान होना बहुत जरूरी है।भारतीय वास्तुकला:-
भारतीय वास्तुकला भारत में भवन निर्माण के विकास की कहानी है, प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मुगल और ब्रिटिश शासन तक। महान साम्राज्यों का उत्थान और पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण और विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम भारतीय वास्तुकला के विकास को दर्शाता है।भारतीय संदर्भ में वास्तुकला की विशेषताएँ:-
किसी देश का विकास उसकी वास्तुकला को प्रतिबिबिंत करती है। किसी क्षेत्र की वास्तुकला समाज और संस्कृति के प्रति उसके झुकाव को प्रदर्शित करती है।भारत में अधिकांश कलात्मक और स्थापत्य अवशेष धार्मिक हैं, जैसे चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर और गुफाएँ; ये सभी भारतीय प्राचीन कला को प्रदर्शित करते हैं।
भारतीय वास्तुकला के भाग:-
प्राचीन भारतीय वास्तुकला:-
- हड़प्पा काल,
- मौर्य काल,
- मौर्योत्तर काल
- ,गुप्त कला,
- दक्षिण भारतीय काल।
मध्यकालीन भारत:-
- दिल्ली सल्तनत,
- मुगल काल
आधुनिक भारत, आधुनिक भारतीय वास्तुकला:-
- इंडो गोथिक शैली
- नव-रोमन शैली
हड़प्पा काल की वास्तुकला, विवरण के साथ प्राचीन भारतीय वास्तुकला:-
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले सिंधु नदी के तट पर एक प्रभावशाली सभ्यता का उदय हुआ, जो बाद में उत्तर-पश्चिम और पश्चिमी भारत के एक बड़े हिस्से में फैल गई, जिसे आज हम हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मनुष्य ने जीवन में वास्तुकला के महत्व को महसूस करना शुरू किया और खुदाई के दौरान मिली सामग्री, जैसे मूर्तियाँ, मुहरें, मिट्टी के बर्तन और आभूषण, यह दर्शाते हैं कि उस समय यह सभ्यता कितनी कलात्मक रही होगी और हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के संगठित शहर आज की वास्तुकला से बिल्कुल भी अलग नहीं रहे होंगे। हड़प्पा सभ्यता की सड़कें, घर और जल निकासी के लिए नालियों का नियोजित प्रसार, विकसित नियोजन का उपयोग और इंजीनियरिंग उनके वास्तविक काल के ज्ञान और कौशल का प्रमाण हैं।हड़प्पा सभ्यता की मुख्य वास्तुकला
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के अवशेषों से उनकी नगर नियोजन की उल्लेखनीय कुशलता का पता चलता है। यहाँ के शहर आयताकार जालीदार प्रणाली पर आधारित थे।सड़कों का जाल वर्तमान प्रणाली पर आधारित था:-
सड़कें उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशाओं में थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं, जिससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उनकी वास्तुकला कितनी मजबूत थी कि आज भी हम वर्तमान सड़कों को उनकी प्रणाली पर बनाने की कोशिश करते हैं। हमने वर्तमान वास्तुकला को प्राचीन वास्तुकला के बराबर ही रखा है।भवनों के प्रकार
मुख्य रूप से तीन प्रकार की इमारतें थीं।
- आवास,
- सार्वजनिक भवन,
- सार्वजनिक स्नानागार और अन्नागार
नगर का विभाजन
शहर दो भागों में विभाजित था।
- ऊंचा गढ़ (दुर्ग )
- निचला शहर
जैसे अन्नागार, प्रशासनिक भवन, खंभों वाला हॉल और आंगन आदि।
"ऊंचे भाग में स्थित इमारतें शासकों और कुलीन वर्ग के निवास स्थान हुआ करते थे।"
अन्नागार निर्माण पद्धति:-
अन्नागार का निर्माण बहुत ही चतुराई से किया जाता था ताकि कीड़े उनमें प्रवेश न कर सकें। इसके लिए वे हवा के प्रवाह के लिए छोटे-छोटे छेद बनाते थे और अन्नागार को ऊंचाई पर स्थापित किया जाता था ताकि जमीन से ऊपर होने के कारण नमी अनाज को खराब न कर सके।सार्वजनिक स्नानागार की निर्माण पद्धति:-
सार्वजनिक स्नानागार छोटे-छोटे कमरों के रूप में बनाए जाते थे ताकि स्नान करते समय एक-दूसरे को न देख सकें। यह उनकी संस्कृति में पवित्रता के महत्व को दर्शाता है। इस स्नानागार का एक विशिष्ट उदाहरण मोहनजोदड़ो में पाया गया व्रहत स्नानागार है।शहर का निचला भाग:-
शहर के निचले भाग में एक-एक कमरे वाली छोटी-छोटी इमारतें मिली हैं। इनका उपयोग श्रमिक वर्ग के लोगों द्वारा आवास के रूप में किया जाता होगा।दो मंजिला इमारतें:-
अधिकांश इमारतें एक मंजिला थीं, लेकिन कुछ घरों में सीढ़ियाँ पाई गई हैं, जो यह संकेत करती है कि ये संभवतः दो मंजिला इमारतें थीं। भवन निर्माण पद्धति में दो मंजिला इमारतों का होना यह संकेत करता है कि इमारतों का निर्माण आर्थिक स्थिति के आधार पर होता होगा।उन्नत जल निकासी व्यवस्था:-
हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उनकी जल निकासी व्यवस्था थी। प्रत्येक घर से निकलने वाली छोटी-छोटी नालियाँ मुख्य सड़क के किनारे बनी बड़ी नालियों से जुड़ी हुई थीं, तथा घर में बनी नालियों का पानी सीधे बड़ी नालियों में चला जाता था।नियमित सफाई और रखरखाव के लिए नालियों को ढक कर रखा जाता था ताकि बाहरी कचरा नाली में न जा सके, तथा नियमित दूरी पर मलपिंड बनाए जाते थे ताकि नालियों में बहने वाला कचरा वहाँ एकत्र हो सके और सफाई करना आसान हो। व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से स्वच्छता पर जोर दिया जाता था ताकि शहरों में स्वच्छता बनी रहे।
निष्कर्ष:-
प्राचीन हड़प्पा सभ्यता को वास्तुकला के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। भवन निर्माण पद्धति - अन्नागार, स्नानागार, कुएँ और नालियों का निर्माण - वर्तमान निर्माण पद्धति से बिल्कुल अलग नहीं थी। सही मायनों में कहा जा सकता है कि किसी देश की प्रगति उसकी निर्माण पद्धति से जुड़ी होती है। प्राचीन सभ्यता से लेकर वर्तमान सभ्यता तक किसी देश का निर्माण उसकी वास्तुकला पर आधारित रही है। अगर हम वर्तमान प्रदर्श को देखें तो जिस क्षेत्र में सड़कों, इमारतों और रेल पटरियों का निर्माण उच्च स्तर का होता है, वह क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक प्रगति करता है। भारत में वास्तुकला मध्यम गुणवत्ता की है। इसे लोगों तक पहुँचाने के लिए सरकार और प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। विदेशों में इस्तेमाल की जा रही नई निर्माण पद्धतियों को देश में अपनाना होगा और निर्माण करना होगा।भारतीय वास्तुकला और प्राचीन भारतीय वास्तुकला का संक्षेप विवरण Read in English---